Tuesday 25 March 2014

दिन के उजाले में

दिन के उजाले में अक्सर
सड़कों पर चलने वाली सैकड़ों
जनवाहनों की आवाज़ों में और
भीड़ की कोलाहल में दब कर
रह जाती है मन की अनकही कई बातें |
सिसक से भरे ऐसे कई आँसू
और कुछ भूली बिछड़ी यादों के साथ
अनगिनत सवालों के जवाब की तलाश में |
जो मन को समेट कर
कहीं न कहीं एक काल पीछे धकेल देता है !
अपनों के बिछड़ने के दर्द का एहसास
अकेले बंद कमरे में एक सहारा छुटता हुया
सिर्फ एक घुटन से भरे कैदखाने की भांति है |

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