सड़कों पर चलने
वाली सैकड़ों
जनवाहनों की
आवाज़ों में और
भीड़ की कोलाहल
में दब कर
रह जाती है मन की
अनकही कई बातें |
सिसक से भरे ऐसे
कई आँसू
और कुछ भूली
बिछड़ी यादों के साथ
अनगिनत सवालों के
जवाब की तलाश में |
जो मन को समेट कर
कहीं न कहीं एक
काल पीछे धकेल देता है !
अपनों के बिछड़ने
के दर्द का एहसास
अकेले बंद कमरे
में एक सहारा छुटता हुया
सिर्फ एक घुटन से
भरे कैदखाने की भांति है |
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