आज के जमाने में संवेदनशीलता ख़त्म सा होते जा रहा है--
परसों रात को करीबन 7:30 मैं कहीं से
लौट रही थी | रास्ते में
ड्राईवर अंकल ने देखा की एक बच्चे का पैर साइकल में फंस गया था | वो बच्चा अपने पिता के साथ साइकल के पीछे
बैठ कर जा रहा था | वो सड़क के
किनारे खड़े हो कर, उस बच्चे के
पैर को निकालने की कोशिश कर रहे थे,
लेकिन निकाल नहीं पा रहे थे,
और बच्चा दर्द के मारे, जोड़-जोड़ से
चिल्ला रहा था | जहाँ वो थे, वो नेशनल हाइ वे (national high way) था | हर वक़्त बस, ट्रक, कार, टेम्पो सबकुछ
चल रहा होता है | सभी देख रहे
थे, लेकिन कोई मदद के लिए
नहीं रुका | ड्राईवर अंकल
ने कार को रोका फिर हम दोनों वहाँ गए,
तब और एक लड़का भी आया | काफी देर बाद
बड़ी मुश्किल से बच्चे का पैर बाहर निकला,
फिर कार से first aid
treatment भी दिया | हमारा कार
रुकने के बाद कुछ आसपास के लोग तो आए,
लेकिन दूर ही खड़े रहे, सामने मदद के
लिए कोई नहीं आया |
लेकिन वहाँ जो मैंने महसूस की, आज के समाज में मानवता की बहुत कमी हो गयी
है |
दूसरा पहलू आखिर संवेदनशीलता क्यों खो गयी ?
हर दिन जिस तरह से लोगों को बेवकूफ़ बना कर, सड़कों पर, लूटते हैं,
तो लोगों का विश्वास कहीं ना कहीं उठ सा गया है | हाल में ही उसी national high way पर चार बसों में एक
साथ डकैती हुई है | उस रात बहुत
से लोग घायल हुये | एक की जान भी
चली गयी | इन सारी
कारणों से लोगों की संवेदनशीलता कहीं खो गयी | कई लोग चाह कर भी मदद करने का हिम्मत नहीं जुटा पाते है
क्योंकि, उनको अपनी जान
जाने की या लूट जाने का डर रहता है |
आख़िरकार हम समाज को जो देंगे, समाज हमें बदले में वही देगा | समाज को कुछ लोगों ने डरा दिया है और भेंट
स्वरूप इसके बदले समाज इंसानियत भूल गया |
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