Saturday 22 March 2014

आज के जमाने में संवेदनशीलता ख़त्म सा होते जा रहा है--


आज के जमाने में संवेदनशीलता ख़त्म सा होते जा रहा है--
परसों रात को करीबन 7:30 मैं कहीं से लौट रही थी | रास्ते में ड्राईवर अंकल ने देखा की एक बच्चे का पैर साइकल में फंस गया था | वो बच्चा अपने पिता के साथ साइकल के पीछे बैठ कर जा रहा था | वो सड़क के किनारे खड़े हो कर, उस बच्चे के पैर को निकालने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन निकाल नहीं पा रहे थे, और बच्चा दर्द के मारे, जोड़-जोड़ से चिल्ला रहा था | जहाँ वो थे, वो नेशनल हाइ वे (national high way) था | हर वक़्त बस, ट्रक, कार, टेम्पो सबकुछ चल रहा होता है | सभी देख रहे थे, लेकिन कोई मदद के लिए नहीं रुका | ड्राईवर अंकल ने कार को रोका फिर हम दोनों वहाँ गए, तब और एक लड़का भी आया | काफी देर बाद बड़ी मुश्किल से बच्चे का पैर बाहर निकला, फिर कार से first aid treatment भी दिया | हमारा कार रुकने के बाद कुछ आसपास के लोग तो आए, लेकिन दूर ही खड़े रहे, सामने मदद के लिए कोई नहीं आया |
लेकिन वहाँ जो मैंने महसूस की, आज के समाज में मानवता की बहुत कमी हो गयी है |

दूसरा पहलू आखिर संवेदनशीलता क्यों खो गयी ?
हर दिन जिस तरह से लोगों को बेवकूफ़ बना कर, सड़कों पर, लूटते हैं, तो लोगों का विश्वास कहीं ना कहीं उठ सा गया है | हाल में ही उसी national high way पर चार बसों में एक साथ डकैती हुई है | उस रात बहुत से लोग घायल हुये | एक की जान भी चली गयी | इन सारी कारणों से लोगों की संवेदनशीलता कहीं खो गयी | कई लोग चाह कर भी मदद करने का हिम्मत नहीं जुटा पाते है क्योंकि, उनको अपनी जान जाने की या लूट जाने का डर रहता है |

आख़िरकार हम समाज को जो देंगे, समाज हमें बदले में वही देगा | समाज को कुछ लोगों ने डरा दिया है और भेंट स्वरूप इसके बदले समाज इंसानियत भूल गया |

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