Wednesday 26 February 2014

बहुत चली हूँ

बहुत चली हूँ, सुबह से शाम तलक
उजालों से अंधेरों में
थकी हरी एक पथिक सी
सिर्फ यह जानने के लिए
कि इस ज़हाँ में नज़दीक कौन है ? —लिली कर्मकार

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