जिन्दगी अब में
तुम्हें हारना चाहती हूँ …..
मेरे खयाल से मैंने
तुम्हें बहुत जी लिया।
जिन्दगी की डगर है बहुत मुश्किल सफ़र ,
समय की धारा में
बहते बहते
किसी दिन इसी
मिट्टी में धूल बन कर मिल जाऊँगी |
कैसे एक इंसान अग्नि
में राख़ हो कर
सिर्फ अस्थि के
रूप में एक छोटे से कलश में समा जाता है
और
बह जाता है किसी
अंजान सी नदी में
और विलीन हो जाता
है किसी सागर-महासागर में |
मैं ओर कुछ नहीं
खोना चाहती और पाना भी नहीं चाहती
हे जिन्दगी ! अब
मैं सिर्फ तुम्हें हारना चाहती हूँ | - लिली कर्मकार
सुन्दर रचना।।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : गौरैया के नाम
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