हम सभी लिखते है
-- दूसरों का दर्द और उनकी तकलीफ, लेकिन अपने अनुभव
के अनुसार | ऐसे बहुत कम लोग
होते हैं जो सच में ही दूसरों का दर्द और दूसरों की तकलीफ समझ पाते हैं और उसे
पीड़ित के दृष्टिकोण से महसूस कर के लिखते हैं | रोजमर्रे की घटना से हम सब यह सोचने पर बाध्य हो गए हैं कि
हमारा समाज बहुत तेज़ी से अपनी संवेदनशीलता खो रहा है | इसलिए अपनी भावनाओं को हम उतनी ही छूट दें जिससे हमे तकलीफ
न हो , क्योंकि वास्तविकता अगर
देखा जाए तो रिश्ते की नीव बहुत हल्की हो गयी है और एक सच यह भी है "यहाँ कोई
किसी का नहीं है" |
"दुनिया जिसे
रिश्ता कहती है वो एक कच्ची डोर है
रिश्तों में कभी
सीधे रास्ते नही, यहाँ रास्तों में
सिर्फ मोड़ है |"
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