मैं तो पथिक मात्र हूँ जीवन के आपाधापी में
कुछ बीती यादों के सहारे ऐसे ही चलती रहूँगी |
कभी कभी मूक हो कर बस दर्शक बनी रही
अपनों के बीच सिर्फ अपनों की तलाश में |
यादों का मरुस्थल आज फिर से जीवित हो उठा
लेकिन पीड़ा में भी हमने आनन्द को तलाशा |
कभी कभी जब दर्द का एहसास होता है
ब्याथित हृदय का कहा हम किसे सुनायें ?
अपनी उठती हुई
आवाज़ों को दबाते हुये कभी
झुक जाती हूँ अपनों के
आगे एक तमाशबीन की तरह | - लिली कर्मकार
No comments:
Post a Comment