शहरी चकाचौंध के पीछे एक पिछड़ा हुआ भारत भी बसता है जहां आधुनिकीकरण की सख्त ज़रूरत है और जहां सबसे ज़्यादा अन्याय हम बच्चों के साथ करते है !
भारत में बेरोजगारी और मंहगाई के कारण गाँव में करीब 80 प्रतिशत बच्चों को एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती है | इसलिए कम उम्र में ही इन बच्चों को बेहतर भविष्य के लिए बाहर काम करने के लिए भेजा जाता है ताकि घर में चूल्हा जल सके | चलती बस या ट्रेन पर, विभिन्न वस्तुओं को अपने तन पर लादे हुए ये बच्चे दिन भर ग्राहकों के पीछे दौड़कर उन्हें बेचते रहते हैं | धुँधली रोशनी में चहारदीवारियों के अन्दर कम उम्र के बच्चे खतरनाक काम करने को भी मजबूर होते हैं | छोटी सी छोटी गलतियों के लिए इन पर हाथ उठाया जाता है | प्रतिदिन पंद्रह से अधिक घंटे काम कराया जाता है | और अंत में उन्हें मिलती है बस सूखी रोटी | स्वतंत्र भारत में यह बाल श्रम एक सामाजिक बुराई को दर्शाता है जहां बच्चों से हम उसकी आज़ादी छीन कर अपना पेट भरते हैं, अपनी जेबें भरते हैं , अपना स्वार्थ पूरा करते है और बड़े गर्व से कहते है कि हम आज़ाद भारत का हिस्सा हैं |
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