Tuesday 10 September 2013

शहरी चकाचौंध और पिछड़े भारत की हकीकत !!

शहरी चकाचौंध के पीछे एक पिछड़ा हुआ भारत भी बसता है जहां आधुनिकीकरण की सख्त ज़रूरत है और जहां सबसे ज़्यादा अन्याय हम बच्चों के साथ करते है ! 

भारत में बेरोजगारी और मंहगाई के कारण गाँव में करीब 80 प्रतिशत बच्चों को एक वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती है | इसलिए कम उम्र में ही इन बच्चों को बेहतर भविष्य के लिए बाहर काम करने के लिए भेजा जाता है ताकि घर में चूल्हा जल सके | चलती बस या ट्रेन पर, विभिन्न वस्तुओं को अपने तन पर लादे हुए ये बच्चे दिन भर ग्राहकों के पीछे दौड़कर उन्हें बेचते रहते हैं | धुँधली रोशनी में चहारदीवारियों के अन्दर कम उम्र के बच्चे खतरनाक काम करने को भी मजबूर होते हैं | छोटी सी छोटी गलतियों के लिए इन पर हाथ उठाया जाता है | प्रतिदिन पंद्रह से अधिक घंटे काम कराया जाता है | और अंत में उन्हें मिलती है बस सूखी रोटी | स्वतंत्र भारत में यह बाल श्रम एक सामाजिक बुराई को दर्शाता है जहां बच्चों से हम उसकी आज़ादी छीन कर अपना पेट भरते हैं, अपनी जेबें भरते हैं , अपना स्वार्थ पूरा करते है और बड़े गर्व से कहते है कि हम आज़ाद भारत का हिस्सा हैं |

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