Monday 2 September 2013

संवेदनाहीन समाज में हम हमेशा यही देखते हैं -----

संवेदनाहीन समाज में हम हमेशा यही देखते हैं !! बच्चे भूखे हैं लेकिन हमे तो अपने आय की फिकर है |

चल प्लेट लगा उस टेबल पर , चल कचरा फेंक कर आ .... चल यह कर तो चल वो कर , एक बाल श्रमिक को यही सब सुनना पड़ता है | फिर भी उस बच्चे को ठीक से दो वक़्त का खाना नसीब होगा, इसमें शक है | पढ़ाई तो बहुत दूर की बात है जहां भावनाएँ दो कौड़ी में बिकती है | उस मासूम को तो अपने दर्द तक समझने का वक़्त नहीं दिया जाता | हम ऐसी सामाजिक व्यवस्था में जी रहे हैं और हम ऐसे समाज का हिस्सा हैं |

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