हमारे समाज में हमारे ही आसपास बहुत सारे पीड़ित/पीड़िता हैं जिन्हें हम समझ तक नहीं सकते | क्योंकि कभी-कभी परिवार के लोग भी समझ नहीं सकते उसके बच्चे या परिजन के ऊपर क्या गुज़र रहा है तो बाहर के लोग क्या समझेगें ! लेकिन जब समझ में आए कि हमारा कोई अपना या जानपहचान का कोई भी इंसान किसी भी तरह के शोषण का शिकार हो रहा है तब उसका साथ ज़रूर दें | शोषण के खिलाफ आवाज़ उठायें चाहे शोषण करनेवाला/वाली कोई भी क्यों ना हो | हमारा समाज पुरुष प्रधान होने के कारण ज़्यादातर लड़कियां ही शोषण का शिकार बनती हैं लेकिन लड़के भी हमारे समाज में शोषित होते है, इस चीज़ को भी हम एकदम से नकार नहीं सकते | मैंने ऐसे कई लोगो को देखा है अपनी इज्ज़त और परिवार की इज्ज़त बचाने के लिए सच नहीं बोलते हैं | और ज़्यादातर तो पीड़ित/पीड़िता को कहीं ना कहीं यह डर हमेशा लगता है कि समाज उसके ऊपर ही आरोप लगाएगा और उसे ही दोषी ठहराएगा |
आज से करीबन 10 साल पहले 2002 की बात है जब मैंने 10th की परीक्षा दी थी, तब मैंने जो गलती की थी उसका एहसास आज भी कहीं न कहीं मुझे होता है | घटना कुछ यों हुई थी ! मेरे लैंड लाइन पर एक लड़के का कॉल आया था | बात करने से पता चला वो गलती से लग गया था मेरे घर के फोन पर | पता नहीं क्या हुआ वो लड़का ऐसे ही बात करने लगा | एक दो बातें होने के बाद पता चला हम एक ही जगह से हैं | वो लड़का हमारे ही शहर का था | लेकिन काम या पढ़ाई के चलते उसे बाहर रहना पड़ रहा था |
फिर जो बात सामने आई वो बात मुझे उस समय समझ में नहीं आई थी | वो लड़का बार बार यही कह रहा था “मैं जहां रह रहा हूँ उस घर की मालकीन मेरा गलत इस्तेमाल कर रहा है | मेरे साथ बहुत दुष्कर्म करते है जो मुझे पसंद नहीं मुझे तकलीफ होता है और मैं किसी को यह बात कह नहीं पा रहा कहीं न कहीं मुझे डर हैं कोई मेरा साथ नहीं देगा” | मुझे उस लड़के ने इतना तक कहा आप अगर कोई सहायता कर पाओ तो करना | फिर शायद कोई आ गया था उस लड़के ने फोन रख दिया और कहा “आप मेरी बातों को मेरे घर तक पहुंचाना मैं झूठ नहीं बोल रहा” | फिर मैंने अपने एक दोस्त को कहा-- देखना तो, वहाँ कोई इस नाम का लड़का रहता है क्या, और वो बाहर रहता है क्या, क्योंकि कहीं ना कहीं मुझे यह सब झूठ लग रहा था | मेरे दोस्त ने भी ख़बर ली -- वो लड़का सच कह रहा था वो मेरी जगह से ही था और गरीब परिवार से था
उसके घर पर फोन तक की सुविधा नहीं थी | लेकिन मैंने किसी को कुछ नहीं कहा , ना तो अपने घर में कुछ कहा ना तो उस लड़के के घर पर | शायद यह मेरी कम बुद्धि का ही नतीजा था या फिर उस कम उम्र की कच्ची सोच का नतीजा भी हो सकता है कि मैं समझ ही नहीं पायी थी उस घटना को कि आखिर वो बोल क्या रहा था | आज मुझे अफसोस है कि मैंने अगर तब कुछ समझदारी दिखाई होती तो एक लड़के का दर्द कम कर पाती | एक साल पहले तक भी मैंने उस लड़के को ढूँढने की कोशिश की लेकिन यह मेरी बदनसीबी है कि वो लड़का तो बहुत दूर की बात है उसका परिवार तक नहीं मिला मुझे | वो लोग हमारे शहर में अब रहते ही नहीं हैं | बस अब इतना ही सोचकर अपने आपको बहलाती हूँ कि शायद वो लड़का अपने हालत से लड़ लिया होगा और आज वो खुश होगा अपने जीवन में |
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