Sunday 28 April 2013

यह जीवन की एक त्रासदी ही है , 
जहां हम जीते जी 
मर रहे है और 
हर रोज़ अपने अन्तर्मन को मार रहे है | 

हम अपनों के बीच 
पराये बन कर खो गए |
हम अपने लक्ष्य को भूल गए , 
अपनी मानवता को खो दिया | 
प्रगति की उड़ानों में 
हम हर रोज़ एक नयी मौत मर रहे है |

एकबार सोचे
आपस में जुड़ने का माध्यम तो बहुत है ,
जो आसानी से एक दूजे से हम जुड़ गए
लेकिन यह भी सच है की ,
हम आपस में बहुत कम जुड़े | - लिली कर्मकार

No comments:

Post a Comment