कुछ क्षण के उजाले में यह मन भी धोखा खा गया |वो तो अंधेरे में एक पल का बिजली का चमकना था | पता नहीं यह मन घने कोहरे में छिपी कौन से धुंधले सपने के पीछे भाग रहा है !जानती हूँ , धोखा और भ्रम यहाँ भी है |फिर भी यह मन , कुछ पल की खुशी के पीछे यूं ही भागता रहता है | - लिली कर्मकार
No comments:
Post a Comment