इस शीशे के समान राजनीति में ...
अहंकार का घनघोर घिरा है ... !
चारो ओर बस अज्ञानता का पहरा है ...
फिर भी हमे चलते जाना है ... !
खोखली नीव से है भरी ...
यह आज की गंदी राजनीति ... !
बाहर से दिखती रंगीन लेकिन ...
अंदर सिर्फ घिनौना खोखलापन है ... !
यहाँ आके खुद ही ठग जाते है सब ...
दिखावे के चक्कर में यहाँ लूट जाते है सब ... !
इस दलदल में जब होश आता है सबको ...
खोज नहीं पाते है बिखरे हुये अपने आपको ... ! – लिली कर्मकार
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