हे मानव, तुम तो विश्वास के काबिल थे ...
अचानक ऐसा क्या हुआ की …
तुम्हारे ऊपर आज विश्वास करने में
इतनी हिचकिचाहट हो रही है ... !!
हे मानव, कभी एक ऐसा भी पल
था …
जब तुमने ही मेरे मन को सुकून दिया था ...
फिर आज क्या हुआ की वही तुम्हारी यादें …
मुझे काटने को दौड़ रहीं है … !
क्यों तुम मुझसे भाग रहे हो और
क्यों मैं तुम्हारी यादों
से भाग रही हूँ … !
जहां तक मुझे याद है …
हमारा रिश्ता तो आपसी विश्वास के ऊपर कायम था ... !
हे मानव, दुनिया बदल चुकी है
साथ में तुम भी बदल चुके हो ... !
कहां गया वो साथ निभाने का वादा और ...
तुम्हारी वो निःस्वार्थ भावनाएँ ... ?
आज की इस भागती दौड़ती
दुनिया में क्या ...
मेरा वजूद तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखता ... ? – लिली कर्मकार
Hi, I'm Akhilesh from New Delhi, India. I read your blog. Your thinking is so nice. I've some queries. Can I discuss with you?
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