जिंदगी अपनी चाल चलती है .....
वो कितना नाचती है कितना घुमाती है ... ।
चलने दो चाले ......
बस बदलने दो जिंदगी का सिलसिला ... ।
गिरो उस बिजली की तरह .....
जिसे बादल के बरसने और .....
सुरज के चमकने का कारण बनता है .... ।
पहचान अपनी ऐसी हो की ......
कहीं भी खो जाओ .....
बन के नदी सागर में समा जाऊ ..... । – लिलि कर्मकार
वो कितना नाचती है कितना घुमाती है ... ।
चलने दो चाले ......
बस बदलने दो जिंदगी का सिलसिला ... ।
गिरो उस बिजली की तरह .....
जिसे बादल के बरसने और .....
सुरज के चमकने का कारण बनता है .... ।
पहचान अपनी ऐसी हो की ......
कहीं भी खो जाओ .....
बन के नदी सागर में समा जाऊ ..... । – लिलि कर्मकार
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