हाँ , लुट गयी वोह यु ही . . .
सर - ए - बाज़ार वफ़ा की . . .
पूंजी की तरह . . .
क्योकि वोह गरीब की बेटी थी . . . !
जिंदगी को सितम कहती है . . .
मज़बूरी में भी खुश रहती है . . . !
ग़म भी बहुत है . . .
दर्द भी है . . . !
दिल में सब दबा लेती है . . .
कभी अकेले में तो . . . ,
कभी सबके सामने . . .
आखों से आसू छुपा लेती है . . . !
लेकिन बिक गयी वोह . . .
किसी मजबूर की जेवरों की तरह . . .
क्योकि वोह गरीब की बेटी थी . . . ! - लिलि कर्मकार
सर - ए - बाज़ार वफ़ा की . . .
पूंजी की तरह . . .
क्योकि वोह गरीब की बेटी थी . . . !
जिंदगी को सितम कहती है . . .
मज़बूरी में भी खुश रहती है . . . !
ग़म भी बहुत है . . .
दर्द भी है . . . !
दिल में सब दबा लेती है . . .
कभी अकेले में तो . . . ,
कभी सबके सामने . . .
आखों से आसू छुपा लेती है . . . !
लेकिन बिक गयी वोह . . .
किसी मजबूर की जेवरों की तरह . . .
क्योकि वोह गरीब की बेटी थी . . . ! - लिलि कर्मकार
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