मुझे आज़ादी चाहिए . . .
खुद में छुपे अपनी कमजोरियों से . . .
सूरज के उजाले पर तो . . .
हर किसीका हक़ होता है . . . !
फिर मैं . . . ,
मुठ्ठी भर उजाले की इंतज़ार क्यों करू . . . !
मुझे आज़ादी चाहिए . . .
सपने पुरे करने की आज़ादी . . .
सपने देखने की आज़ादी . . . !
मुझे जीना है . . .
अपने सपनों को साकार करना है . . .
मुझे आज़ादी चाहिए . . .
इस झूठी शान से . . .
इस बनावटी समाज के रिवाजों से . . . ! - लिलि कर्मकार
खुद में छुपे अपनी कमजोरियों से . . .
सूरज के उजाले पर तो . . .
हर किसीका हक़ होता है . . . !
फिर मैं . . . ,
मुठ्ठी भर उजाले की इंतज़ार क्यों करू . . . !
मुझे आज़ादी चाहिए . . .
सपने पुरे करने की आज़ादी . . .
सपने देखने की आज़ादी . . . !
मुझे जीना है . . .
अपने सपनों को साकार करना है . . .
मुझे आज़ादी चाहिए . . .
इस झूठी शान से . . .
इस बनावटी समाज के रिवाजों से . . . ! - लिलि कर्मकार
No comments:
Post a Comment