Friday 31 August 2012

क्रोध इसलिए आता है कि हमारे मन में भरा है । अगर हमारे मन में क्रोध न हो तो कौन क्रोध दिला सकता है, किसकी हिम्मत है ? गाली सुनकर क्रोध इसलिए आता है क्योंकि हमारे मन में गाली है, गाली का भाव हे, घृणा है, गंदगी है । जो मन के कुएँ में होगा, विचारों की बाल्टी, शब्दों की बाल्टी उसे ही तो बाहर लाएगी । आपने कुएँ में बाल्टी डाली, अगर कुएँ में पानी होगा तब तो बाल्टी भरी आएगी, अन्यथा अगर कुआँ खाली है तो बाल्
टी खाली की खाली ही आएगी । हमारे मन में गाली है तभी तो दूसरे के शब्दों की बाल्टी उसे बाहर निकाल पाती है । मन में घृणा की गंदगी है तभी तो बाहर उसकी ब्रू आती है । मन साफ-स्वच्छ, पाक-पवित्र हो तो जीवन में सुवास आए । सुवास आए तो भॅंवरे मंडराएँ । सुगंध होगी, महक होगी तो भॅंवरे स्वत: आ जायेंगे । विज्ञापन की, ढिंढोरा पीटने की, इश्तहार करने की कतई आवश्यकता नहीं पडेगी ।

क्रोध का दूसरा कारण है - अपेक्षा की उपेक्षा । जिनसे हम सम्मान की अपेक्षा रखते हैं, आदर की अपेक्षा रखते हैं, वे ही जब हमारा अपमान करने लगते हैं, अनादर करने लगते हैं, तब क्रोध आता है । जिनसे प्रेम चाहा था, प्रेम मिलने की पूरी उम्मीद थी, वे ही जब घृणा करने लगते हैं तो मन क्रोध से भर जाता है । ...... ..........तरुणसागरजी महाराज

No comments:

Post a Comment