Friday 31 August 2012

किसी का ‘ दर्द ‘
‘ आखों ‘ से ‘ आसू ‘
बनके बहती है ... ,
ओर किसी का ‘ दर्द ‘
आखों में ‘ मोती ‘ बनके
रह जाती है .... !!!

वो ‘ बेदर्द ‘ किया जाने....??
किसी के ‘ दर्द ‘ को...जो
खुद ही ‘ दर्द ‘ देने में
शामिल हो .... !!!

किसी के लिए यह
….’ आसू ’ ....
पानी की कुछ
‘ बूंदें ‘ है ओर
किसी के लिए ‘ मोती ‘..।

जो यह ‘ आसू ‘
‘ दर्द ‘ में ......
‘ पत्थर ‘ तो न बन पाए
‘ मोती ‘ ही बन गए .....!!! - लिलि कर्मकार ...।
 


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