निन्दा : - जोछ: प्रसिद्ध विकार हैं, उनको जीतने की ओर तो हरेक ज्ञानवान व्यक्ति का ध्यान रहता ही है॥ परन्तु दुस्तर माया से युद्ध करते-करते, मनुष्य कई बार माया के किसी अन्य रूप से परास्त हो जाता है॥ माया का ऐसा एक रूप - दूसरों में दोष ढूंढ कर उसकी निन्दा करना है॥ बहुत लोगो को देखा गया है की वे जीवन में संयम का पालन करना चाहते हुए भी 'शब्द संयम' को खो बैठते हैं॥ वे
अपनी जीभ्या को अपने नियंत्रण में नहीं रख पाते॥ पाँच-छ: फुट लम्बे मनुष्य होते हुए भी वे तीन इंच की जीभ्या से पराजित हो जाते हैं॥ प्रसंग न होने पर भी तथा उस व्यक्ति के अनुपस्थिति होने पर भी वे अपने ओष्ठों को धनुष बना कर उस द्वारा ज़हरीले शब्द-रूपी बाण छोड़ते ही रहते हैं॥ हरेक की निन्दा करना उनका मनोरंजन (Hobby) बन जाता है॥
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