दिल टूटने की आहट कहाँ होती हैं ......?
मैं कल भी अकेली थी ……
मैं आज भी अकेली ही हूँ …..?
कोई तो अपना नहीं इस अनजान शहर में ....
कहाँ खोजूँ अपनापन ...........?
हमने तो छलावे को पकड़ कर
वक़्त को यू ही जाया कर दिये ........
तुम तो वह शिखर हो जिसे मैंने
हमेसा ही छूने की कोशिश की ....
पर हात कुछ ना आई सिर्फ ...
पथर - दर - पथर चोट ही मिलती रही .........
इस सुनसान सी दुनिया में ......
मैं अकेली भटकती ही रह गयी ........! - लिलि कर्मकार
मैं कल भी अकेली थी ……
मैं आज भी अकेली ही हूँ …..?
कोई तो अपना नहीं इस अनजान शहर में ....
कहाँ खोजूँ अपनापन ...........?
हमने तो छलावे को पकड़ कर
वक़्त को यू ही जाया कर दिये ........
तुम तो वह शिखर हो जिसे मैंने
हमेसा ही छूने की कोशिश की ....
पर हात कुछ ना आई सिर्फ ...
पथर - दर - पथर चोट ही मिलती रही .........
इस सुनसान सी दुनिया में ......
मैं अकेली भटकती ही रह गयी ........! - लिलि कर्मकार
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