जिंदेगी की ताने – बाने में यूं उलझे हैं की .....
हमसे अपनी जिंदेगी ही खो गयी है ........ !
जब फुर्सत के दो पल नसीब होते हैं ....
तो मन सुकून के लिए तड़प उठता हैं .... !
जीवन तो एक धुएँ की धरोहर सी लगती हैं .....
सपने हमसे या हम सपनों से भाग रहे हैं ..... !
या फिर हम उन सपनों के ही लायक नहीं है ....?
लगता हैं पहले मन भटकता हैं ......
फिर हम भटकते हैं अपने आपसे ...... !
कभी कभी या यूं कहे की ........
अक्सर जिंदेगी में ऐसे पल आते है ....!
कुछ समझ में नहीं आता .....
आखिर करें तो क्या करें जिंदेगी में ...... ?
हम लाख रोके लेकिन सवाल तो फुट ही पड़ता है
कि मन इतना बेचैन क्यों है ....... ? - लिलि कर्मकार
हमसे अपनी जिंदेगी ही खो गयी है ........ !
जब फुर्सत के दो पल नसीब होते हैं ....
तो मन सुकून के लिए तड़प उठता हैं .... !
जीवन तो एक धुएँ की धरोहर सी लगती हैं .....
सपने हमसे या हम सपनों से भाग रहे हैं ..... !
या फिर हम उन सपनों के ही लायक नहीं है ....?
लगता हैं पहले मन भटकता हैं ......
फिर हम भटकते हैं अपने आपसे ...... !
कभी कभी या यूं कहे की ........
अक्सर जिंदेगी में ऐसे पल आते है ....!
कुछ समझ में नहीं आता .....
आखिर करें तो क्या करें जिंदेगी में ...... ?
हम लाख रोके लेकिन सवाल तो फुट ही पड़ता है
कि मन इतना बेचैन क्यों है ....... ? - लिलि कर्मकार
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