Friday 31 August 2012


जीवन की आपाधापी से दूर

दिन वो बचपन के ,

आज वही ........

ख्वाब लिख रही हूँ मैं ,

खयाल लिख रही हूँ मैं ,

वही एहसास लिख रही हूँ मैं .....!

पता नही कहाँ खो गई

वह जिंदगी .......।

सब बदल गए हैं ...

शायद में भी बदल रही हूँ …….

ये बदलाव भी जिंदगी का ही

एक रूप है ...... !

बस , यही जिन्दगी है

जो अब बखूबी से समझ पा रही हूँ ...! - लिलि कर्मकार

No comments:

Post a Comment