मैंने देखा हवावों के दामन
सौगातो से भरे हुए …….
चुपके से वोह चलती है
सरहदों के पार ......
परदा आतंक का ,
परदा सरहदों का ,
वोह अनजान है ......
इन सारी डर से ....
मैंने देखा है ........
सरहदों के पार
जाती हुयी हवा को ,
ओर आती हुयी हवा को ………
लेकिन मैंने यह नहीं देखा ,
मौसमों की रंगीनियत को
अलग सी होते हुये .......! - लिलि कर्मकार
सौगातो से भरे हुए …….
चुपके से वोह चलती है
सरहदों के पार ......
परदा आतंक का ,
परदा सरहदों का ,
वोह अनजान है ......
इन सारी डर से ....
मैंने देखा है ........
सरहदों के पार
जाती हुयी हवा को ,
ओर आती हुयी हवा को ………
लेकिन मैंने यह नहीं देखा ,
मौसमों की रंगीनियत को
अलग सी होते हुये .......! - लिलि कर्मकार
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