Thursday 26 September 2013

भौतिकवादी दुनिया से समन्वय की कमी ---

आज दौड़ती-भागती दुनिया में हर रिश्ता बहुत कमज़ोर हो गया है | मैंने अपने जीवन में या अपने से जुड़े लोगों के जीवन में हमेशा ही देखा है कि हम अपने रिश्ते को ले कर बहुत ही ज़्यादा असुरक्षित रहते है क्योंकि आजकल रिश्ता बहुत जल्दी टूट जाता है | हम लोगों में कहीं न कहीं इस भौतिकवादी दुनिया से समन्वय की कमी हो गयी है | लेकिन जो लोग अपने हर एक रिश्ते को सँजो कर रखना चाहते हैं , अगर उनको किसी भी प्रकार के रिश्ते में कोई धोखा मिले या कोई उनसे दूर जाना चाहता है , तब उनकी मानसिक स्थिति पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ता है , वे जीना ही भूल जाते हैं , क्योंकि उनके लिए उनके रिश्ते नाते ही सबकुछ होते है |  


लेकिन यह भी सच है कि कोई अगर हमसे दूर जाना चाहता है तब हम उसको रोक भी नहीं पाते हैं , चाहे हम कितनी भी कोशिश क्यूँ न कर लें | तब सामनेवाले के नज़र में हमारा हर एक काम गलत लगने लगता है | उन्हें रोकने की हमारी हरेक कोशिश उनके लिए फांसी का फंदा जैसा होता है मानो हम उस व्यक्ति को रोक कर उनकी आज़ादी छीन रहे हैं | मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ कोई अगर हमें छोड़ कर जाना चाहता है तो उसे तुरंत जाने देना चाहिए अगर अपना है तो लौट कर आएगा  नहीं तो बहुत दूर चले जाएगा | क्योंकि इंसान दूर जाने के लिए ही रिश्ते तोड़ते हैं , जोड़ने के लिए नहीं | तब हम एक रिश्ता जोड़ने के लिए बहुत सारी गलतियाँ भी कर देते हैं और अपने आत्मसम्मान की भी बली दे देते हैं | एक तो खुद परेशान होते हैं, फिर सामने वाले को भी परेशान करते हैं , उससे रिश्ता ओर भी बिगड़ जाता है | सामनेवाले को तब हमारी भावनाओं की कोई कदर नहीं रहता है , उसे हमारी हर हरकत तब काटने को दौड़ती है | फिर हम हमारे अपने को भी परेशान करते हैं , यह सब बोल कर उनका भी वक़्त खराब करते हैं | लेकिन अपने हैं , इसलिए हमें  सहारा भी दे देते हैं , हमें सुन भी लेते है और बिना कोई शिकायत किए समझाते भी हैं | मेरी व्यक्तिगत सोच यह है कि जब हमारे जीवन में कोई हमसे दूर जाना चाहता है या रिश्ता तोड़ना चाहता है तब हमें मौन हो कर उसे जाने देना चाहिए | क्योंकि ऐसे रिश्ते को हम ज़्यादा दिन जी भी नहीं पाते हैं क्योंकि वो रिश्ता ही मर चुका है , हम बस अपने आपको बहलाने के लिए उसे जीवित करने की कोशिश करते हैं | और जब वो रिश्ता जीवित नहीं होता है तब अपने अन्तर्मन को दुखाने का कारण भी हम खुद ही बनते हैं | कुछ दुख को वर्तमान में ही सह लें , तो सही रहता है हमारे लिए , ताकि  हमारा भविष्य बहुत ज़्यादा सुरक्षित रहे |

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार - 27/09/2013 को
    विवेकानंद जी का शिकागो संभाषण: भारत का वैश्विक परिचय - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः24 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


    ReplyDelete
  2. सुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
    कभी इधर भी पधारिये ,

    ReplyDelete