मेरी व्यक्तिगत सोच यह है --- 'समाजसेवा व राष्ट्रसेवा' करने के लिए उससे 'आसक्ति' (Attachment) और 'संवेदनशील' (Sensitive) होना ज़रूरी है | क्योंकि जबतक हम किसी कार्य या व्यक्ति के साथ अपनी आसक्ति या संवेदनशीलता नहीं रखेंगे तबतक हम उस कार्य या फिर उस व्यक्ति के लिए अपने मन से कुछ कर नहीं पाएंगे | समाज व देश या फिर किसी व्यक्ति की पीड़ा को समझने के लिए संवेदनशील होना ज़रूरी है | और संवेदनशील इंसान तभी हो सकता है जब उस कार्य या उस व्यक्ति के साथ उसका आसक्ति हो | कई लोग कहते है की "आसक्ति ना रखो किसी चीज़ से" वे लोग कौनसी आध्यात्मिक स्थिति में पहुँच कर यह बात कह रहे है वो मुझे समझ में नहीं आती है क्योंकि मैं अभी तक अध्यात्म के उस स्थिति तक पहुँच नहीं पायी और वो वैराग्य भी अभी तक मेरे अंदर नहीं है | अगर मैं कुछ कर रही हूँ वो सिर्फ मेरा आसक्ति और संवेदनशीलता के कारण ही संभव है |
क्या खूब लिखा है,बहुत सुन्दर। ब्लॉग कलश पर सम्मिलित। सदस्यता ग्रहण कर मIन बढ़ाएं।
ReplyDeleteकोम्मेट्स से वर्ड वेरिफिकेसन हटा दें कमेंट्स करने में परेशानी होती है
जी धन्यवाद ...
Deleteआशक्ति और संवेदनशीलता दोनों अलग अलग बातें है !
ReplyDeleteआसक्ति (attachment) और संवेदनशील दोनों ही ज़रूरी है ... संवेदनशील अगर ना हुये तो किसी का पीड़ा समझना मुश्किल है |
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