नयी सोच
Friday 5 October 2012
जैसे ख़ुशी का ठहराव सा है जीवन में ...
पर पूछो तो कहती है
…
“ लड़की बन के जन्मी वही शायद अपराध था ... !
ऊपर से गरीब विधवा
सबकुछ खोया भी मैंने
,
फिर भी समाज में
...
मैं ही एक श्राप बनके रही गयी हूँ ... ! ” – लिलि कर्मकार
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