वफ़ा क्या और बेवफ़ा की वजह भी क्या .....
जहां भावनाओं को कौड़ियों के मोल बिकते देखा है .... !
न जाने क्या मिला उसे ....
जो तुम्हारी सच्ची वफ़ा से खेला .... !
जिन्हें तुमने रखा वफ़ा के शिखर पर ....
देखो लो करतूत इस ज़ालिम दुनिया की .....
उसी ने किया सरेआम नीलाम तुम्हें ...
खुले बाज़ार में नीलामी के किसी सामान की तरह ..... ! – लिलि कर्मकार
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