जो समाज प्रकृति के विषय में अपने स्वयं के सिद्धांतों को गढ़ कर उन पर कुंडली मार कर बैठने के साथ उनके प्रति एक प्रकार की आसक्तिपूर्ण मानसिकता का निर्माण कर लेता है और अपने दंभ में प्रकृति से कुछ भी सीखने से इनकार कर देता है ............. उसका पतन ऐसे ही होता है जैसे मुट्ठी में भरी बालू ......................नीति
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