न जाने सरहदों की दिवार पर . . .
इंसान इतना नाज क्यों करते है . . . ?
न जाने कहाँ खो गयी . . .
‘ वो इंसानियत ’ . . . !
न जाने कहाँ खो गयी . . .
‘ वो मासूमियत ’ . . . !
यह तो ईंट पत्थरों का सरहदें है . . .
पत्थरों पर क्यों माथा ठोकना . . . !
मजहब कभी नहीं सिखाता है . . . ;
आपस मै वैर करना और . . .
बेगुनाहों का खून बहाना . . . ! -लिलि कर्मकार
इंसान इतना नाज क्यों करते है . . . ?
न जाने कहाँ खो गयी . . .
‘ वो इंसानियत ’ . . . !
न जाने कहाँ खो गयी . . .
‘ वो मासूमियत ’ . . . !
यह तो ईंट पत्थरों का सरहदें है . . .
पत्थरों पर क्यों माथा ठोकना . . . !
मजहब कभी नहीं सिखाता है . . . ;
आपस मै वैर करना और . . .
बेगुनाहों का खून बहाना . . . ! -लिलि कर्मकार
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