Monday 17 September 2012

जिंदगी तुम तो कभी खोजना नहीं चाहते थे मुझे .....

मैं तो यूं ही …….

चलते चलते सरे राह तुमसे मिल गया था …. !


फिर एक रोज़ जब …….

मैं यूं ही अपने आप से बाहर निकला …..

तब देखा चारो ओर उजाला है .....

सिर्फ मैं ही अंधेरे में सिमटा हुया था .....

लगा की एक अरसे का भ्रम आज टूट गया ..... !

अब तो जीना है ………

अपने लिए और अपने जमीर के लिए ..... ! – लिलि कर्मकार

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