कल तक था जो घोर अंधकार . . .
आज वहाँ उजाला देखती हूँ . . .
बदला सा आसमान भी देखती हूँ . . . !
कब जागेगा यह सोये हुये सूरज . . . !
कब होगा सबेरा . . . !
अब तो जागो सोये हुये शेरों . . .
अब इज्ज़त आ गयी बाज़ार में . . .
कहीं तुम्हे ही न लड़वा दे आपस में . . . !
अब आग लगा दो इन सारी नारों में . . . ! – लिलि कर्मकार
आज वहाँ उजाला देखती हूँ . . .
बदला सा आसमान भी देखती हूँ . . . !
कब जागेगा यह सोये हुये सूरज . . . !
कब होगा सबेरा . . . !
अब तो जागो सोये हुये शेरों . . .
अब इज्ज़त आ गयी बाज़ार में . . .
कहीं तुम्हे ही न लड़वा दे आपस में . . . !
अब आग लगा दो इन सारी नारों में . . . ! – लिलि कर्मकार
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