जीवन की कुछ बातें इंसान को .....
बहुत उलझन में डालती है ....... !
बहुत उलझन में डालती है ....... !
जीवन जिया भी नहीं ओर दर्द का ......
गहरा रिस्ता हमारे जीवन से बन गया ....!
सिकवा भी करूँ तो किससे ...... ?
गिला भी करूँ तो भी किससे ..... ?
ज़ख़म देने वाले भी तो अपने ही है .....
सुबहा शाम तन्हाई में ही जिया है ....... !
भूलना भी चाहते है भूल भी गए है .....
लेकिन यह रिस्ते का सिलसिला ......
गम के आसु को भूलने नहीं देता ...... ! – लिलि कर्मकार
गहरा रिस्ता हमारे जीवन से बन गया ....!
सिकवा भी करूँ तो किससे ...... ?
गिला भी करूँ तो भी किससे ..... ?
ज़ख़म देने वाले भी तो अपने ही है .....
सुबहा शाम तन्हाई में ही जिया है ....... !
भूलना भी चाहते है भूल भी गए है .....
लेकिन यह रिस्ते का सिलसिला ......
गम के आसु को भूलने नहीं देता ...... ! – लिलि कर्मकार
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