हर ‘ एक इंसान ’ का
अपना अपना ‘ सोच ’ ,
‘ अहसास ’ अपना अपना
ओर ‘ अंदाज़ ’ भी अपना …. !
कोई कुछ भी कहे ,
अपना अपना ‘ सोच ’ ,
‘ अहसास ’ अपना अपना
ओर ‘ अंदाज़ ’ भी अपना …. !
कोई कुछ भी कहे ,
‘ प्रेम ’ तो बस
‘ प्रेम ’ होता है .... !
कोई ‘ भगवान ’ से करता है
तो कोई ‘ देश ’ से ,
कोई ‘ प्रकृति ’ से करता है तो
कोई ‘ देह धारी ’ इंसान से ..... !
लेकिन ‘ प्रेम ’ तो आखिर
‘ प्रेम ’ ही होता है .... !
जिसे हम ‘ अनजाने ’ में
‘ नाम ’ दे देते है
‘ प्रेम ’ होता है .... !
कोई ‘ भगवान ’ से करता है
तो कोई ‘ देश ’ से ,
कोई ‘ प्रकृति ’ से करता है तो
कोई ‘ देह धारी ’ इंसान से ..... !
लेकिन ‘ प्रेम ’ तो आखिर
‘ प्रेम ’ ही होता है .... !
जिसे हम ‘ अनजाने ’ में
‘ नाम ’ दे देते है
“ सुख की खोज ” का …. ! - लिलि कर्मकार ...।
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