वो खुली जुल्फें , वो घूमती निगाहें
वो रेत पे चलते पैरों के निशान ,
वो सिसकती हुई सांसें , वह दबी जुबाँ
फिर भी कुछ कहती है इन फिजाओं को , इन घटाओं को |
हवाएं छू जाती है उसकी खुली जुल्फों को
कोई समझ के भी न समझे तुम्हारी बोली को !
एक पहेली सी हो तुम ,
जाने किस रंगीन दुनिया की रहने वाली हो तुम |
रंगों से भरी दुनिया है तुम्हारी
रंगीन हो तुम जहाँ भी जाओ रंग बरसाओ
रंगीन कर देती हो इस बेरंग जहां को | - लिली कर्मकार
वो रेत पे चलते पैरों के निशान ,
वो सिसकती हुई सांसें , वह दबी जुबाँ
फिर भी कुछ कहती है इन फिजाओं को , इन घटाओं को |
हवाएं छू जाती है उसकी खुली जुल्फों को
कोई समझ के भी न समझे तुम्हारी बोली को !
एक पहेली सी हो तुम ,
जाने किस रंगीन दुनिया की रहने वाली हो तुम |
रंगों से भरी दुनिया है तुम्हारी
रंगीन हो तुम जहाँ भी जाओ रंग बरसाओ
रंगीन कर देती हो इस बेरंग जहां को | - लिली कर्मकार
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