मैं अंग्रेजी के
खिलाफ नहीं हूँ मगर यदि कोई नहीं जानता है तो यह कोई गुनाह भी नहीं है। अंग्रेजी न
जानने पर कई लोग संकोच अनुभव करते हैं। खुल कर सामने नहीं आते, अपने टैलेंट को दबा कर रखते हैं। लेकिन ऐसी सोच
ही इंसान को पीछे धकेल देती है। अंग्रेजी जानना ही पड़ेगा यह ज़रूरी नहीं है,
यह एक भाषा मात्र है। अपनी संकोच से हमें बाहर
निकलना चाहिए। कई बार यह छोटी सोच के कारण कई लोग हमसे खुल नहीं पाते क्योंकि हमने
यह सोच बना ली है कि जो अंग्रेजी बोलेगा वही मॉडर्न और टैलेंटेड इंसान है, जो कि मैंने अपने फील्ड वर्क पर ऐसा कभी अनुभव
नहीं किया। और कई लोगों को मैंने हमेशा देखा है यदि किसी ने अंग्रेजी गलत तरह से
बोले या उच्चारण करे तो उसका मज़ाक उड़ाते हैं या शर्मिंदा करते है। जो कि एक सभ्य
इंसान का काम कभी नहीं हो सकता। जब कोई भारतीय इंसान हिंदी या अपनी मातृभाषा को
ढंग से नहीं बोल पाता तो उसको हम बहुत सम्मान देते है क्योंकि वह यह सब न जाने
लेकिन अंग्रेजी तो जनता है। यह सब देख कर मुझे लगता है हमें अपनी सोच में बहुत
सुधार की ज़रुरत है। हमें आगे बढ़ना चाहिए लेकिन सिर्फ एक भाषा के आधार पर नहीं अपनी
उच्च सोच और उदारता के आधार पर।।
नयी सोच
Saturday, 4 April 2015
टेलीविज़न और दिमागी संतुलन
यह हम पर ही
निर्भर करता है कि हम टेलीविज़न पर दिखाये जाने वाली किसी भी विषय वस्तु को किस तरह
से लेते है। मैंने अक्सर कुछ लोगों को देखा है क्राइम से जुडी कहानियों को देखते
देखते उन सभी विषयों को वह इंसान स्वयं पर हावी कर बैठते है। फिर हर किसी पर शक
करना और पूरी दुनिया के बारे में एक गलत धारणा बना लेते है। टीवी पर जो क्राइम से
जुड़े प्रोग्राम दिखाते है वह हमें अलर्ट करने के लिए हैं ना कि पूरी दुनिया के लिए
नकारात्मक सोच बनाने के लिए। सतर्क रहना और नकारात्मक सोच में अंतर होता है।
दुनिया में अच्छे बुरे दोनों तरह के लोग ही होते है। अगर किसी का दिमाग यह सब
स्वीकार नहीं कर पाता तो उसे यह सब देखना छोड़ देना चाहिए। फिर वह इंसान दुनिया के
प्रति अपनी सोच नकारात्मक बना लेते है और धीरे-धीरे मानसिक बीमारी के भी शिकार हो
जाते है। मेरा खुद का मानना यह है की ज़्यादातर लोग अच्छे ही होते है, कुछ बुरे लोगों की करतूत के वजह से अच्छाइ पर
बुराई हावी हो गयी।।
Thursday, 4 December 2014
हम मूक दर्शक मात्र है
अगर हम मूक दर्शक
मात्र है फिर हमें किसी भी घटना के बारे में आलोचना करने का कोई हक नहीं है ।।
( हरियाणा में उन
दो लड़किओं ने अगर लड़कों को बेवजह ही पिट रही थी तब उस बस के पब्लिक क्यों मूक
दर्शक बने खड़े रहे ? और अब हम सब सही
गलत का मज़े से आलोचना कर रहे है । किसी के जीवन में घटी घटना को हमने रियलिटी शो
बना दिया । एकबार सोचिये यदि यह मामला अगर परिकल्पना कर के भी किया गया तो हमारे
देश में बिना परिकल्पना किये कितनी लड़कियां प्रतारीत मानसिक और शारीरिक रूप से
अत्याचार की शिकार होती है । और हम सिर्फ दो लड़कों के पीटने पर इतना सस्कार,
जायज़ और कानून की बात क्यूँ कर रहे है !! ) --
लिली कर्मकार
Saturday, 8 November 2014
धूप छाँव में रचने को एक नया सवेरा
हार जीत के इस
दौर में
भागते इस दो पल
में ....
जीवन के इस अज़ब
दौर में
उम्मीदों की कुछ
लौ,
भीड़ में लड़खड़ायी
तो है,
लेकिन साथी,
अभी नहीं थमना है,
धूप छाँव में
रचने को एक नया सवेरा
बस चलते जाना है
और चलते जाना है । -लिली कर्मकार
Saturday, 16 August 2014
संगठन
जब किसी संगठन
में कोई सिर्फ़ अपने उच्च पद को बचाने और उस पर बने रहने के लालच में किसी बौद्धिक
व्यक्ति को अनदेखा करता है और उससे हमेशा चापलूसी करने की उम्मीद करता है, तो फिर उस संगठन के उद्देश्य को बाहर से कितना
भी जानदार और शानदार क्यूँ न दिखाया जाये, पर अन्दर से उतनी ही खोखली दिखाई पड़ती है ।।
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