हार जीत के इस
दौर में
भागते इस दो पल
में ....
जीवन के इस अज़ब
दौर में
उम्मीदों की कुछ
लौ,
भीड़ में लड़खड़ायी
तो है,
लेकिन साथी,
अभी नहीं थमना है,
धूप छाँव में
रचने को एक नया सवेरा
बस चलते जाना है
और चलते जाना है । -लिली कर्मकार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (10-11-2014) को "नौ नवंबर और वर्षगाँठ" (चर्चा मंच-1793) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteअति सुन्दर प्रस्तुति
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